नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-24
लक्षणा और कदंभ बिना कुछ सोचे समझे उस नागराज की प्रतिमा के ऊपर एक छावनी से मिलकर बना ली, वह सोचे कि कुछ भी हो इस प्रतिमा को चोट भी ना आगे देंगे, चाहे फिर पूर्णाहुति के रूप में स्वयं के प्राण ही क्यों न देने पड़े। लेकिन जिन की रक्षा हेतु भक्त स्वयं अपने प्राण दांव पर लगा देने को तैयार हो, उन्हें भला ईश्वर कैसे चोट खाने देते। वह शिलाखंड मंदिर के ऊपर से ही किसी अदृश्य शक्ति से टकराकर चकनाचूर हो बिखर गया।पूरा मंदिर ऐसे लगने लगा जैसे किसी छावनी से ढक गया हो।
वह नागराज की प्रतिमा प्रकाशमान हो उठा, और वहां हलचल सी होने लगी। वहां पर स्थित हर छोटे-छोटे शिवलिंग मूर्त रूप लेने लगी, एक पल के लिए तो दोनों डर से गए, लेकिन अगले ही पल उनके विश्वास और भक्ति ने उन्हें सफल बना दिया और दोनों आश्चर्य से ईश्वरीय लीला का आनंद लेने लगे। उन्होंने देखा कि पूरी छावनी की तरह अनेक फन और संपूर्ण मंदिर को ढके हुए हैं। वह संपूर्ण पर्वत प्रकृति से परे विशाल समुद्र के बीच समुद्र मंथन के समय नागराज के घेरे में जैसे था, वैसे ही नजर आता था। वह दोनों ही नतमस्तक हो, उन्हें प्रणाम करने लगे,
तभी नागराज की प्रतिमा मूर्त रूप ले एक विशाल नाग परिवार की तरह प्रतीत होने लगा। देखते ही देखते एक विशाल नाग परिवार उपस्थित होने तथा सभी नागमणि धारण किए जैसे उन दोनों भक्तों को अपनी सेवा के रूप में आज विशेष उपहार देने हेतु उपस्थित होने लगे।
देखते ही देखते नागराज की प्रतिमा मूलरूप में आकर उपस्थित हों दोनों भक्तों को आशीर्वाद देकर कहने लगे, लक्षणा और कदंभ तुम दोनों ही मेरे अनंत भक्तों की श्रेणी में आ चुके हो।अब किसी प्रकार का भय मत करो। तुम अब अजय और अमर प्राणियों से कोई कम नहीं, संसार की समस्त शक्तियां संवत तुम्हें पाने को तुम्हारी सेवा के लिए लालायित होगी। किसी भी लोक में आवागमन तुम्हारे लिए सहज होगा। तुम दोनों ने अपने प्राणों की चिंता ना करते हुए जिस प्रतिमा को अपनी छाया में छुपा रखा है। वह स्वयं महादेव ने मुझे मेरी तपस्या से प्रसन्न हो प्रदान किया था। जो यह अतिरिक्त शिवलिंग तुम देख रहे हो इन सभी में किसी न किसी नाग परिवारों के सदस्य उपस्थिति बनी रही।
सर्प योग के दौरान जिन नागों ने अपने आप को तपस्या को शिवलिंग में समाहित कर लिया। उन्हें थोड़ी सी भी क्षति नहीं हुई। क्योंकि महाकालेश्वर की शरण में गए हुए का काल भला क्या कर सकता है, तो फिर किसी भक्त के यज्ञ करने से अमंगल हो सकता है? यह स्थान वर्षों से गुप्त था लेकिन तुम दोनों की आँखों से ये छुप न पाया। साकंबरी देवी को मैंने ही कहा था कि लक्षणा को यहां तक पहुंचाने का मार्ग दिखाएं। और तुम दोनों के लिए सारे रास्ते एक एक कर उजागर होते चले गए और सभी तुम्हारी सेवा और भक्ति भावना से अति प्रसन्न है।
जिस वातावरण में कोई साधारण मनुष्य देहरी भी नहीं छोड़ता। उस समय में भी तुम दोनों अभिषेक हेतु उपस्थित हो, और इस प्रतिमा को बचाने हेतु अपने प्राण दांव पर लगाने हेतु तत्पर हो।इसलिए मैं तुम्हें यह भी वरदान देता हूं कि सिर्फ जाति ही नहीं यक्ष, गंधर्व, लोकपाल, देखभाल और दानवो सभी ईश्वरीय समस्या के पाने हेतु तुम दोनों के समीप हमेशा बने रहेंगे।जिससे कुछ तुम्हारे सेवक तो, कुछ अपनी शक्तियों के अनुसार तुम्हारे साथी या मित्र बनकर या फिर यदि दानवीय शक्तियां हो तो तुम्हारे अधीन बनकर रहेगी।
तुम दोनों आज से इस प्रकृति के किसी भी प्रभाव से अलग से रहोगे। यह संपूर्ण प्रकृति को जब चाहे तुम दोनों जन कल्याण हेतु प्रार्थना कर परिवर्तित करने की शक्ति तुम्हें प्रदान करता हूं, और तुम्हें आज नागराज के दर्शन के साथ रुद्राभिषेक का भी पूर्ण लाभ प्राप्त होगा। यह कहते हुए उन्होंने अपने मणि को वहां स्थित उस प्रकाश में प्रतिमा के ऊपर रखा, जो देखते ही देखते अत्यंत प्रकाशमय हो गया।
उसी क्रम में उपस्थित समस्त नागों अपने-अपने स्थान पर एकत्रित करने लगे, और जब वह प्रतिमा अपने पूर्ण आकार में आ गईं ।तब अचानक आकाशगंगा से दुग्ध नुमा मधुर मिश्रित अभिषेक हेतु जल उस प्रतिमा पर प्रभावित होने लगा। सभी मिलकर अभिषेक और पूजन में तल्लीन होने लगे। वह संपूर्ण घाटी जैसे भक्तिमय हो उठी। लक्षणा और कदंभ भी उसमें डूब चले। शिव की छवि जैसे ही उस प्रतिमा में प्रकट हुई। सभी ने जयकारा लगाया और महामृत्युंजय मंत्र के साथ पूर्ण आहुति संपूर्ण हुई। देखते ही देखते तभी मणि पुनः अपने अपने स्वामियों के पास चले गईं ,और समस्त वातावरण सामान्य हो चला। वहां सिर्फ शेष बचे तो नागराज और वे दोनों ।
नागराज ने उन दोनों को समझाते हुए कहा कि तुम दोनों की मित्रता को देख मैं बहुत प्रसन्न हूं ।और इतने वरदानओं के साथ हर पल तुम्हारी मदद करने का वचन देता हूं। लेकिन भविष्य नहीं बदल सकता हूं। जिससे विधाता ने स्वयं को लोक कल्याण हेतु कुछ सोच समझकर लिखा है। बस इतना कहूंगा कि आज के विषय में तुम किसी से कुछ न कहना और भविष्य में कभी भी एक दूसरे का साथ मत छोड़ना, क्योंकि आने वाला समय एक नई सूरज की किरण के साथ निकलेगा।
नागराज ने अपना एक विशेष मंडल लक्षणा के हृदय स्थल में स्थापित करते हुए लक्षणा और कदंभ को यह वरदान दिया, कि जब वह सफर में किसी भी विपत्ति में पड़े,, तब उस समय मात्र एक बार स्मरण करने पर भी वे स्वयं उसकी सहायता हेतु उपस्थित हो जाएंगे। इसी के साथ उन्होंने अनेकों समझाइश और सफर की शुभकामनाओं के साथ लक्षणा और कदंभ को विदाई दी, और यह भी बताया कि वह पूर्व से ही जानते थे कि इसी गांव में लक्षणा का जन्म पूर्व से सुनिश्चित था। जो आगे चलकर नागराज के दर्शन और सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त करें। बहुत सी घटनाएं इसलिए पूर्ववर्ती चली गई, हर घटना कहीं ना कहीं लक्षणा के लिए मददगार साबित होती जा रही थी, अपना ध्यान रखना कहते हुए वे अंतर्ध्यान हो गए।
लक्षणा को लग रहा था, कि वह कामयाबी की और बढ़ रही हैं। लेकिन जितना आसान वो समझ रही थी, इतना आसान उसका सफर था नहीं। क्योंकि यह तो सिर्फ तैयारियां थी, उस उत्तम कार्य की जिसे लक्षणा के माध्यम से पूर्ण किया जाना था। उससे मिलने वाली प्रत्येक मदद जिसे लक्षणा अब तक कामयाबी समझ रही थी, वास्तव में वे उन चुनौतियों का संकेत था ।
क्रमशः....